Reading 16:- काबुलीवाला ~ Bioscopewaala !! समीक्षा -Review!!
टैगोर और उनकी कहानियाँ- चाहे उन्हें कितनी ही बार पढ़ें , हमेशा नई और एकदम ताज़ा सी लगती है।
" काबुलीवाला"
ये कहानी शायद बरसों पहले पढ़ी होगी और शायद
, हम सब ने बचपन में पढ़ी हो
, पर आज भी इसे पढ़ो,
तो अपने ही सादगी में जैसे रंग देती है
|
सादगी के साथ ये कहानी - अधूरापन , दर्द और अकेलेपन का एहसास भी करा जाती है।
मिनी बेबी और काबुलीवाले की दोस्ती तो बेहद खूबसूरत है। उनकी गुफ़्तगु, उनकी कहानियाँ , उनकी हँसी-ख़ुशी , जानो जैसे- एक अलग ही दुनिया बसती है, इन दोनों की। दोनों अपनी ही धुन में मशरूफ रहते हैं , अपनी ही कहानियों से खुद को रंगते हैं |
वैसे ये यादें भी अजीब ही होती है | जो मिनी बेबी- काबुलीवाला, काबुलीवाला- कहते थकती नहीं थी , उसे , उसके कैद हो जाने पर , उसकी कमी का एहसास होता ही नहीं है , और अपने बचपन से बड़े होने के दौर में , अपने काबुलीवाले को भूल भी चुकी है।
जब भी मैं इस कहानी को पढ़ कुछ लिखना चाहती , तो मेरी कलम कहीं बीच में ही रुक सी जाती , कभी पूरी ही नहीं होती।
बस फर्क सिर्फ यही है कि जहाँ
" काबुलीवाले
" की कहानी अधूरी सी लगती है
, वही
bioscopewaala की कहानी पूरी सी नजर आती है। जो शिकायत टैगोर से होती थी,
वो जैसे इस
Bioscopewaale की कहानी ने दूर कर दिया हो।
Stories, Camera, Reels, ,Movies, Pictures-ये सब जादूगर जैसे लगते है , जो अपनी जादू की छड़ी से एक पल के लिए सब कुछ ही बदल देते हैं।
और फिर ये गाना
- आया हो आया
, आया Bioscopewaala
आया।
ये तो जैसे हमारे काबुलीवाले की मिनी बेबी, और Bioscopewaala की मिनी बेबी की जान है।
और शायद हमारे और आपके भी दिल को छू जाए
|
बस अब सोचना क्या, क्यों ना थोड़ा सा समय निकालकर हम काबुलीवाला और Bioscopewaala दोनों से ही मिलने चलें।
A beautiful extract from the story of Kaabuliwaala by Rabindranath Tagore-
"The impression of an ink-smeared hand
Laid flat on paper,
A touch of his own little daughter
That had been always on his heart,
As he had come year after year to Calcutta
To sell his wares in the streets."
कागज़ पर किसी नन्हे हाथ की छाप थी। फोटो नहीं
, रंगों से बना चित्र नहीं
, प्यारी बिटिया के हाथ में थोड़ी सी कालिख लगाकर कागज़ के ऊपर उसकी छाप ले ली गयी थी। अपनी प्यारी बिटिया के हाथ की इसी यादगार को सीने से लगाए रहमत कलकत्ते की सड़कों पर मेवा बेचने आता
, मानो उस सुन्दर
,कोमल नन्ही बच्ची के हाथ की छुअन भर उसके ह्रदय में अमृत की धारा बहाती रहती।
"
रबीन्द्रनाथ टैगोर~
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