Reading 20:- Mrityunjaya:- कृष्ण से एक सवाल !!
महाभारत के कर्ण मुझे बेहद प्रिय है |
मैं जब जब महाभारत
पढ़ती हूँ , हर बार पाती हूँ कि मै कृष्ण से पूछती हूँ कि आपने कर्ण को उनकी सच्चाई
बताने में इतनी विलम्ब क्यूँ की ?
महाभारत और कर्ण के साथ हुए उत्पीड़न देखकर ये साफ़ पता चलता है कि उस वक़्त वेदांत उपनिषद् नहीं था क्यूंकि इतने बड़े बड़े योद्धा जैसे पितामह भीष्म , गुरु द्रोंण , पशुराम जी – सब ने कर्ण को उसके जाति के बदौलत ही नीचा दिखाया , ये भली भांति देखते हुए कि कर्ण कितने वीर और महान पुरुष है |
मै वेदांत एवं उपनिषद् का रचना काल देख रही थी , तो मालूम चला उपनिषद् 700-500BC काल में रचित हुए और महाभारत का काल 1500-2000BCE का रहा है , तो जाहिर है , उपनिषद् से वंचित थे , महाभारत के पात्र |
खैर , कुछ कहते हैं कि कर्ण ने कृष्ण को नहीं चुना होगा पर मेरा मन ये मानता ही नहीं कि कर्ण ने कृष्ण को नहीं चुना होगा |
कर्ण तो जब जब कृष्ण को देखते थे , उनके प्रति वो अत्यंत भक्ति पूर्ण थे |
जबकि कृष्ण ने जब कर्ण को सच्चाई बताई , कर्ण खुद को सूर्य पुत्र जानकर कितने आभार
और पूर्ण महसूस किये थे |
पर उस वक़्त हालात इतने बिगड़ चुके थे कि कर्ण पांडव के
बड़े भाई होते हुए भी , पांडव का साथ नहीं दे सकते थे |
कर्ण के पौरुष को देखकर मेरा मन ये मानता ही नहीं , कि कर्ण ने कृष्ण को ठुकराया होगा , जबकि ऐसा लगता है कि कृष्ण ने स्वयं ही विलम्ब किया |
कृष्ण जब आये भी कर्ण को उसकी सच्चाई बताने तो उस वक़्त जब महाभारत होने से रोका ही नहीं जा सकता था , कर्ण को उसकी सच्चाई बताना कृष्ण की एक उम्मीद थी कि महाभारत रुक जाए |
और जब सोचती हूँ कि
एक पल को कर्ण कृष्ण की बात मानकर ,पांडव के बड़े भाई होने की सच्चाई को अपनाकर ,युद्ध लड़ने से मना कर देते , तो क्या दुर्योधन युद्ध नहीं करता ? दुर्योधन तो फिर
भी कर्ण का निर्माण कर ही लेता ना ?
कर्ण तो अपने जन्म से ही , अपनी अस्तित्व को सवाल करते आये हैं | कर्ण ने अपने आखिरी सांस तक अपना कर्त्तव्य निभाया है | उनके पुरुषार्थ को देखकर लगता है कर्ण तो कब तक ये क्षत्रिय , सूत आदि जाति के परे हो चुके हैं बस बेकार ही खुद को इस अज्ञानी समाज के अज्ञान में खुद को जला रहे हैं |
मै कर्ण के बारे में जब जब पढ़ती हूँ ; खुद को कर्ण से बाहर नहीं निकाल पाती हूँ |
क्या ऐसा होता है कि कृष्ण का मिलना भी संयोग है पर कर्ण के साथ ये कैसा
संयोग हुआ ?
मैं कभी भी दुर्योधन की जीत नहीं चाहती , पर कर्ण को हारता देख , कर्ण को मरता देख ; मुझे अत्यंत दुःख होता है |
कर्ण – कर्ण का ह्रदय , कर्ण
की तपस्या ,कर्ण की सादगी , कर्ण की वीरता , वो वीरता जो ठोकरें खा रही है पर आगे
बढ़ती ही जा रही है , कर्ण का प्रेम – जिस
प्रेम से वो सूर्य भगवान् की आराधना करते हैं , मुझे भीतर तक छू जाता है |
बस इस सवाल का जवाब मिल जाए कि कृष्ण ने कर्ण की
सच्चाई बताने में इतना विलम्ब क्यों किया ? बहुत मौके थे ऐसे जहाँ कर्ण को सच्चाई
बहुत पहले ही बताई जा सकती थी , पर नहीं | ऐसा क्यों ?
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