Reading 30 :- संघर्ष :- पाठ -५ नोट्स- पढाई , संसार और जीवन के निर्णय
मन शांत है या अशांत है – महत्त्व नहीं देना है |
मन शांत हो भी गया , तो उससे क्या ही मिल जाना है |
मन छाया है , हमारी | मन पीछे पीछे आना है – हमें बस जान
दिखानी है |
मन की शांति – अशांति ; सहमति – असहमति की परवाह नहीं करते
|
मन पर अनगिनत प्रभाव पड़ते हैं , लाखों सालों के संचित
प्रभावों का नाम है मन |
मन को कोई भी , किधर को भी खींच सकता है |
पर ये जितने भी प्रभाव हैं , वो कुल मिलाकर भी , आत्मा के
सामर्थ्य के आगे कुछ नहीं है |
तो आत्मिक रूप से हम जिधर को भी बढ़ेंगे , मन पीछे पीछे आएगा
|
जगत को कुछ ऐसा देंगे जिससे उसे लाभ हो रहा है , तो जगत भी
तुमको
सफलता आदि देगा |
लोगों को वो देना है , जो वास्तव में मूल्य रखता है |
और जो भी मूल्यवान दे रहे हैं , उससे पता भी चलना चाहिए ,
कि उन्हें लाभ हो रहा है |
कई बार , देने के साथ साथ – जताना और समझाना भी पड़ता है ;
क्यूंकि कभी कभी लोग नहीं समझ पाते कि उनको लाभ हो रहा है |
प्रश्न –
क्या गुरु को एक उदाहरण मानकर , उनपर विश्वास रखकर चलने से
आखिरी चीज तक पंहुचा जा सकता है ?
अगर गुरु को उदाहरण बना रहे हैं , तो फिर , उसमें अपनी
मान्यता और अपना व्यक्तित्व बीच में नहीं लाना है |
गुरु सामने कई तरह के उदाहरण रखते हैं , वो कभी नहीं कहते
कि मेरे निजी व्यक्तित्व से चिपककर रहो |
तो गुरु जब अन्य उदाहरणों की ओर प्रेरित करे , तो वहां जाने
से इनकार नहीं करना है |
जैसे – रामकृष्ण परमहंस के गुरु थे – तोतापुरी महाराज |
उनकी तोंद बहुत बड़ी थी |
तो अगर मैं मोटा हूँ – तो मैंने कहा – मैं तो गुरु को
उदहारण बनाऊंगा | ये स्वार्थ है , क्यूंकि गुरु को यहाँ पकड़ा ताकि जलेबियाँ चलती
रहे |
तो गुरु के पास आना है , और वो जिधर भेजेंगे , उधर को जाना
भी है |
ये पूछना नहीं है , उस दिशा में मिलेगा क्या ?
प्रश्न – अध्यात्म जीवन में आने से सांसारिक और पारिवारिक
कार्यों में मन क्यूँ नहीं लगता ?
अध्यात्म की वजह से सांसारिक और पारिवारिक कार्यों से मन
नहीं उठ जाता ; अध्यात्म की वजह से
वेवकूफी से मन उठता है |
अध्यात्म संसार – परिवार – समाज से विरोध नहीं करता |
अध्यात्म जीवन को सच्चाई और सौंदर्य देने का विज्ञान है |
अध्यात्म विवेकहीनता , मुर्खता , वेवकूफी और अज्ञान के
अँधेरे में रौशनी डालने का नाम है |
लोग कहते हैं , अध्यात्म के आने से परिवार में समस्याएं बढ़ गयी है ;
इससे ये पता चलता है कि परिवार वेव्कूफियों का अड्डा था और अध्यात्म के
आने से उन वेवकूफियों पर चोट पड़ रही है |
परिवार में सच्चाई होनी चाहिए , रिश्तों में मधुरता होनी चाहिए , रस होना चाहिए , प्रेम होना चाहिए , निष्कामता होना चाहिए
उसकी जगह
पारिवारिक रिश्ते अगर भ्रम पर , मोह पर , स्वार्थ पर , कामनाओं पर आधारित हैं , तो
अध्यात्म से उन रिश्तों पर चोट तो पड़ेगी न |
अध्यात्म रिश्तों के खिलाफ नहीं , रिश्तों की मलिनता के
खिलाफ है |
अध्यात्म रिश्तों की सफाई करता है , रिश्ते तोड़ नहीं देता |
जो रिश्ते आध्यात्मिक बुनियाद पर बनते हैं , उनसे प्यारे
रिश्ते दूसरे नहीं होते हैं |
रिश्ते तोड़ने की तो कोई बात ही नहीं है , संतों के रिश्ते
तो पूरे संसार से बन जाते हैं |
संत कहते हैं – पूरा ब्रह्माण्ड ही हमारा परिवार है |
शास्त्र अनंत राशि हैं |
जितना उनमे गहरे जाओगे , उतनी सम्पदा पाओगे |
खेल _
आदमी के जितने भी रचे खेल हैं , उनमे आदमी की बीमारियाँ और
वृतियां भी परिलक्षित होती हैं |
जैसे – क्रिकेट की गेंद – चमड़े की होती है |
बैडमिंटन का शटल कॉर्क = पक्षी की हत्या होती है |
बैडमिंटन का बनना मुश्किल हो जाएगा अगर लोहे का खनन या एल्युमीनियम
का खनन नहीं हो |
खेलना चाहिए , पर एक बिंदु आता है जब दिखने लगता है कि अगर
खेल आदमी ने रचा है , तो उसमी आदमी के दुर्गुण भी हैं |
हमारे खेल एक दूसरे को पछारने के खेल हैं | हम खेलते समय भी
एक दूसरे को पछारे बिना नहीं खेल सकते |
हमारा ऐसा कोई खेल नहीं है जिसमे हारकर जीता जाता हो |
खेल हमने रचे हैं , तो हमारे ही जैसे हैं |
पर खेलना है , क्यूंकि अभी हम इतना आगे नहीं बढे हैं कि खेल
की निरर्थकता को देख पाएं |
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