Reading 29:- संघर्ष :- पाठ -४ नोट्स :-प्याज लहसून , और यम – नियम का आचरण

 



प्याज लहसून वर्जित होते हैं – साधना में – तो ये कहाँ तक सही है ?

दो पक्ष –

    १) जैसा अन्न , वैसा मन –

हम जो कुछ भी खाते हैं , उसका हमारी मनोस्थिति पर अंतर पड़ता है |

हम जो कुछ भी खाते हैं , वो अपनी प्रकृति के अनुसार हमारे शरीर और मन पर प्रभाव डालता है |

प्याज लहसून में वैज्ञानिक कुछ रसायनों के बारे में बताते हैं , जो हमें उत्तेजित करते हैं , हमारी स्थिरता में विघ्न डालते हैं |

हम खुद भी देख सकते हैं , कि जब हम प्याज लहसून खाते हैं , तो मन पर प्रभाव पड़ता ही है |

 

   २) हम कहीं  प्याज – लहसून , और अन्य कर्मकांड के चक्कर में जो केंद्रीय चीज है – मैं / अहम् / I उसपर तो ध्यान देना नहीं बंद कर दिए |

नियम , कर्मकांड का अपना महत्त्व है पर उनमें उलझकर कुछ ख़ास बदलाव हो नहीं जाना है , अगर  जो केंद्रीय चीज है अहम् उसपर काम नहीं कर रहे | एक लाख बार ध्यान एक / मैं पर देना है , तब छह बार ध्यान इन छोटी छोटी चीजों – प्याज – लहसून वर्जना पर दे सकते हैं |

 

प्रश्न – आचरण का अर्थ ?

हम आचरण को पहली चीज मान लेते हैं |

आचरण के तल पर बदलाव हम नकली मुखौटा डाल कर भी ला सकते हैं |

कबीर साहब कहते हैं –

"तन उजला मन काला , बगुला कपटी अंग |

तासे तो कौआ भला , तन मन एक ही रंग ||"

 

पर जो संत साधू जब आचरण की बात करते हैं , वो दूसरी बात कह रहे थे |

वो कहते हैं , हम जो कुछ भी हैं , वो अंततः हमारे कर्म में दिखाई देगा |

उन्होंने कहा , तुम्हारे पास जो ज्ञान है , वो सब तो ठीक है , पर तुम्हारा आचरण कैसा है ?

जैसे हो , वैसा आचरण करोगे |

आचरण पर निगाह रख लेना , बात पकड़ में आ जायेगी , कि कितने पानी में हो |

हम उनकी बातों को तोड़ मरोर देते हैं | हम अपनी हस्ती को जस का तस बचाना चाहते हैं और उसके ऊपर आचरण का नक़ाब डाल लेते हैं | और वहीँ फिर गरबर होती है |

सब जगह बात यही है –

एक / अहम् केंद्र/ दिल  की सफाई करो , बाकी बाहरी बोल चाल , बात – व्यवहार अपने आप साफ़ हो जाते हैं |


 दिल की सफाई कैसे पता करें ?

आचरण देख लो |

वो कह रहे हैं , पीछे की सफाई करो ; आचरण अपने आप साफ़ हो जाएगा |

और हम आचरण को साफ़ करने में लग गए , पीछे चाहे जितनी भी गन्दगी हो |

बात बहुत बहुत सीधी सादी होती है , तो उसके लिए उतना ही सीधा – सादा और मासूम मन भी होना चाहिए जहाँ कोई विकार बचा नहीं |

अगर किसी खिलाड़ी मन पर , वो मासूम बात मिलती है , तो वो अर्थ का अनर्थ कर देता है |

आचरण बिलकुल आखिरी चीज है |

अगर आत्मिक तरक्की का रास्ता सही चयन किया है , तो आचरण बिलकुल अंत में आएगी |

हमें अपने केंद्र – अहंकार के बीज को बदलना है |

उद्देश्य अंततः आतंरिक परिवर्तन है |

असली चीज पर ध्यान देना है |

समय बहुत सीमित है हमारे पास |

और उस सीमित समय का ऊँचा से ऊँचा इस्तेमाल करना है |

 

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