Reading 31 :- संघर्ष :- पाठ -६ नोट्स- भारत ज्यादातर क्षेत्रों में इतना पीछे क्यूँ ?
भारत में दुनिया के कामों में excellence नहीं दिखती ?
हर क्षेत्र में भारत चाहे व्यवसाय हो , खेल हो , तकनीक हो
आदि पिछरा हुआ दीखता है ; ऐसा क्यूँ ?
भारत में कुछ असाधारण लोग हुए जिन्होंने कहा ये दुनिया /
जगत मिथ्या है और ये तन – मन सत्य नहीं है |
और ये बात पूरे जनमानस के साथ उन्होंने सांझा किया , पर
जनमानस बेहद नाकाबिल निकला उनकी बात का |
ऋषि – मुनियों ने , संतों ने ये बात बताई ताकि हम दुनिया
में बंध कर ही न रह जाए | उन्होंने कहा
दुनिया का उपयोग संसाधन की तरह करो , ताकि दुनिया से मुक्त हो जाओ; पर दुनिया को
लक्ष्य नहीं बनाना है |
जगत में संघर्ष करना है , भागना नहीं है |
पर हमने संतों की इस बात को पकड़ लिया कि जगत मिथ्या है ,
क्या करना है उत्कृष्ट हो कर के | जैसे – क्या करना है कमरे की सफाई कर के , एक
दिन तो सब को धुल में मिलना है |
भारत में हर आदमी दार्शनिक हो गया | किसी को बोलो थोडा दौड़
लगा लो , वो बोलेगा -
नाहं देहास्मी | मैं देह ही नहीं हूँ | तो देह को अच्छा
क्यूँ रखना है ? क्यों व्यायाम करना ? क्या खाना – पीना ? भारत में इतनी महिलाएं anaemic हैं , दुनिया में कहीं नहीं |
अच्छी गाड़ियां क्यों बनाना है , अंत में शमशान घाट ही तो
जाना है |
हमने गीता को भी नाच – गान का ग्रन्थ बना दिया |
गीता ऐसी आग है कि एक बार आपको पकड़ ले , आप बच नहीं सकते
राख होने से – सारी कमजोरियां , बहाने आदि सब जला देती है गीता |
श्रीकृष्ण बोल रहे हैं – खड़ा हो जा अर्जुन , धनुष उठा | कोई
बहाना नहीं चलेगा |
कृष्ण का सन्देश घोर संघर्ष का सन्देश है | पर संघर्ष की
जगह सब कृष्ण के नाम पर नाचते हैं |
कृष्ण बोले अर्जुन को – मोह हटा , भय हटा , भ्रम हटा , किसी
की मत सोच , बस मेरा मुह देख और भिर जा |
भारत संघर्ष तो करता नहीं , बस घुटने टेक देता है |
हम हॉकी खेल में जीते हुए मैच हार जाते हैं |
हम जानवर की तरह जूझ जाना एक दम भूल गए |
जानवर की तरह जूझना मतलब – ख्याल ही मत रखो शरीर बचेगा या
नहीं बचेगा , प्राण एक तरफ रखो और सामने वाले का गला पकड़ लो , भले ही तीन गुना
क्यों न हो |
हम भारत ने पाकिस्तान को हौवा बना रखा है , पाकिस्तान को
हरा दिया जैसे कितने गौरव की बात है |
चीन जो बिलकुल बराबर का है , उससे तो हम डर कर बैठे हुए हैं
| चीन आज भी जमीन ले जा रहा है और हम डर कर सहमे हुए हैं |
बस किसी कमजोर पर चढ़ बैठते हैं |
धर्म का अर्थ होता है उससे भिड़ना जो तुमसे कहीं बहुत बहुत
ज्यादा बड़ा है |
जीवन से ही भिर जाना , धर्म होता है |
धार्मिक आदमी अपने क्षेत्र में कभी कमजोर नहीं रह सकता |
वो संघर्ष करेगा , युद्ध में मर सकता है , हार नहीं सकता |
विज्ञान में नयी नयी उपलब्धियां लाएगा | हार कर कभी पीछे नहीं आएगा |
भारत ने सिद्धांत उठा लिए और मर्म से चूक गए |
पश्चिम को सिद्धांत नहीं मिला , तो उसने कहा भौतिकवाद है | उसने
कहा संसार ही एकमात्र स्थान है | और अपनी दुनिया बेहतर बना ली |
भारत बीच में अटका रह गया |
भौतिक दुनिया को कहा – ये मिथ्या है और मुक्त दुनिया की ओर
बढ़ने का कोई साहस नहीं दिखाया |
कहीं के नहीं रहे – माया मिली न राम |
राम के प्रति निष्ठा नहीं दिखा पाए और माया ऐसों को मिलती
नहीं जो संघर्ष न करे |
दुनिया में जीतने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है |
हम जुगाड़ करते हैं , excellence की जगह जुगाड़ |
विवेकानंद कहते थे – यह देश लगभग नपुंसक हो चला है , इस देश
को पौरुष की जरुरत है | और बहाना देते हैं – जगत मिथ्या |
यहाँ सब कहते हैं – आत्मा सत्य होती है और वो जब मर जाते
हैं , फुर से उड़ जाती है , उसे आत्मा बोलते हैं |
पश्चिम एक अति पर चला गया – materialism की अति पर और भारत ने उससे बड़ी गलती करी , वो बिलकुल दूसरी
अति पर चला गया जहाँ जगत का अपमान ही कर डाला बिना जगत को समझे |
संतों ने ये नहीं कहा – जगत को छोड़ दो , उन्होंने बोला जगत
का भरपूर उपयोग करो , यहाँ पाना भले कुछ नहीं है पर लड़ना है – इसी को निष्काम कर्म
बोलते हैं |
भारत ने लड़ने से भी इनकार कर दिया |
हमारी universities research में पीछे है | patent कुछ
नहीं है |
हिंदी फिल्मों के गाने , विदेशी गाने की नक़ल हुआ करती थी |
दुनिया के प्रति कामना नहीं रखनी है , पर हम दुनिया में हैं
तो बंधक के तौर पर ही , तो अपनी मुक्ति के लिए भरपूर संघर्ष करना है |
सही काम उठाना है , और पूरी उत्कृष्टता excellence के साथ कर के दिखाना है |
सही लड़ाई चुननी है और जूझ के लड़नी है |
जो कर रहे हो अगर उसमे नम्बर एक नहीं हो तो बहुत झूठा है
धर्म और ध्यान तुम्हारा |
और अगर वो काम इस लायक नहीं है कि उसमें नंबर एक हुआ जाए ,
तो धर्म कहता है कि वो काम करो ही मत , छोड़ दो |
जो सही काम है , वो करो | उसी को स्वधर्म कहते हैं |
जिन्दा भी हो , काम भी कर रहे हो और उसमे कुछ करके भी नहीं
दिखा रहे तो , जी क्यों रहे हो ?
श्रीकृष्ण कहते हैं – प्रकृति का अर्थ ही है गति , यहाँ जो
भी है वो गतिशील है , माने कर्म कर रहा है | और कर्म जब कर ही रहे हो , अर्जुन ,
तो धाकड़ कर्म करो न |
जब तक जिन्दा हो कर्म त्याग तो सकते नहीं |
भारतियों में जिन्हें वेदांत समझ में आया , जिनमे
उत्कृष्टता के प्रति प्रेम जगा , वो शिखर पर पहुंचे |
श्रीकृष्ण कहते हैं – जिस क्षेत्र में जो भी सर्वोच्च है ,
सर्वश्रेष्ठ है , वो मैं हूँ |
शस्त्रधारियों में कौन हूँ मैं, अर्जुन - राम
हूँ |
अर्जुन में गीता को पाने की जितनी भी पात्रताएं थी , वो सब
पर्याप्त मात्रा में थी – इसलिए उन्हें मिली |
पात्रता मतलब उत्कृष्टता – वो हम दिखाते नहीं |
कृष्ण ऊँचे से ऊँचा की बात करते है – नदियों में गंगा जैसी
विशालता |
अध्यात्म हारे हुए लोगों के लिए नहीं है |
भारत में अध्यात्म हारे हुए कमजोर लोगों का अड्डा बन गया है
– हारे को हरि नाम | श्रीराम को बोलते हैं पतित पावन – जो गिरा हुआ है – पतित |
भारत हारता ही गया क्यूंकि हारे को हरि नाम | जो हारे वो
बड़ा आदमी |
हारना बड़प्पन है , जब तुममे जीतने की क्षमता हो | जिसके पास
बल हो , वो क्षमा का अधिकारी होता है |
भारत ने बल को त्याग दिया | अहंकार ने कहा – करना क्या है
बल का ?
हम ये नहीं कह सकते कि भारत के पास आर्थिक संसाधन की कमी थी
इसलिए पिछड़ा हुआ है , ऐसा नहीं है |
दक्षिण पूर्व एशिया के देश – मलेशिया , इंडोनेशिया ,
सिंगापुर – सब बहुत आगे हैं , और हमारे साथ ही आजाद हुए |
ताइवान छोटा सा द्वीप है पर चीन के सामने सीना तानकर खड़ा
हुआ है |
हम कायरता दर्शाते हैं , वैराग्य तो आत्मज्ञान से होता है |
भारत में जब तक धर्मयुद्ध , अपने ही विरुद्ध युद्ध को धर्म
नहीं जाना जाएगा , तब तक भारत जग नहीं पाएगा |
युध्यस्व
सब जवान की आँखों में एक तेज होना चाहिए – छोटे मुद्दों में
हम उलझते नहीं और सही लड़ाई से हम पीछे हट नहीं सकते |
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