Reading 9:- पुस्तक प्रकृति :- पाठ ३.४ - नोट्स:- जहाँ वेदांत है , वहां मुक्ति है |
पहचान क्या है ?
दासता |
हमारे तीन मालिक ही हमें पहचान (identity) देते हैं |
पहचान (identity) गौरव नहीं होती |
दासता का ठप्पा होती है |
मै इस जाति का हूँ , इस धर्म का हूँ , मै ये मानता हूँ , मैं ये हूँ , वो हूँ , मैं ऐसा सोचता हूँ :- जो भी पहचान बोलते हैं , वो गुलामी का ठप्पा है |
मेरी कोई पहचान नहीं , कोई identity नहीं |
वेदांत कोई पहचान नहीं देता | कुछ मानने को नहीं बोलता , किसी विचारधारा में विश्वास करने को नहीं बोलता |
तभी स्वामी विवेकानंद ने कहा था , वेदांत के बिना एक धर्म नहीं , सारे धर्म अंधविश्वास मात्र हैं | क्यूंकि धर्मं का अधिकांशतः अर्थ होता है - मान्यता ; beliefs.
मान्यता और विश्वास को धर्म नहीं बोलते |
जिज्ञासा को धर्म बोलते हैं |
वेदांत धर्म को विश्वास से उठाकर विवेक पर ले आता है |
नहीं तो धर्म सिर्फ अंधविश्वास है | धर्म सिर्फ कहानी , मान्यता ही रह जाती है अगर वेदांत को हटा दे तो | किसी ने कुछ लिख दिया , किसी ने कुछ |
धर्म को गौरव वेदांत देता है , वेदांत है जो कहता है - नहीं मान रहे , जहाँ मान्यता है , वहां गुलामी है |
वेदांत नहीं तो संतों के भजनों का कोई अर्थ नहीं निकलेगा |
वेदांत नहीं तो पुराणों की कथायों का कोई अर्थ नहीं निकलेगा |
बाइबिल , लाओ त्जू का कोई अर्थ नहीं निकलेगा |
जहाँ वेदांत है , वहां मुक्ति है ||
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