Reading 8:- पुस्तक प्रकृति :- पाठ ३.3 - नोट्स:- प्रकृति के द्रष्टा रहने में ही रस है ||
प्रकृति अपने गुण के अनुसार अपना काम करती है |
अहंकार प्रकृति में लिप्त होकर केवल प्रकृति का नाश ही करता है |
और हम प्रकृति का नाश देखते हैं - जलवायु परिवर्तन के रूप में , जंगल का कट जाना , जानवरों को मारना आदि आदि |
अहंकार पैदा प्रकृति से हुआ है , पर अगर वो प्रकृति के साथ रह गया , तो प्रकृति को बर्बाद कर डालता है |
प्रकृति का गुण है नाचना , अहंकार का गुण है केवल द्रष्टा बन प्रकृति की नाच को देखना |
आनंद द्रष्टा बनने में है |
अपनी विदाई कैसे लेनी है ?
मुमुक्षु बनकर या मुमूर्षु बन कर |
मुमुक्षु अर्थात मुक्ति की इच्छा लेकर |
मुमूर्षु अर्थात मृत्यु की इच्छा लेकर |
जो मुमुक्षु नहीं वो मुमूर्षु है |
"आया है सो जाएगा , राजा रंक फ़कीर |
एक सिंहासन चढ़ी चले , एक बंधे जंजीर "
कबीर साहब ||
हंसा पायो मानसरोवर , ताल तलैया क्यूँ डोले ||""
जिस दिन प्रकृति को देखने लग जायेंगे , उस दिन प्रकृति को भोग नहीं पायेंगे | जिस दिन देखने लग जायेंगे कि सारे जानवर हमारे बच्चे हैं और हम उसके माँ बाप , हम उन्हें मार नहीं पायेंगे |
भले ही जानवरों का आकार हाथी जैसा हो |
क्यूंकि मनुष्य की पहचान चेतना है और हमारी चेतना हाथी की चेतना से बड़ी है , तो हाथी हमारा बच्चा हुआ | पूरी प्रकृति हमारी बच्ची है और बच्चों को भोगना चाइल्ड मोलेस्टेशन कहलाता है |
प्रकृति के द्रष्टा रहने में ही एक रस है |
अध्यात्म के नाम पर शरीर को सुधारने की कोशिश |
हम अध्यात्म के नाम पर शरीर को सुधारने की कोशिश करते हैं | शरीर भी एक छोटा बच्चा है , सुधारने की जगह , अपना काम देखने की जरुरत है |
शरीर ऐसा कर दे, वैसा कर दे ; एक सीमा तक ही उपयोगी है , उसके बाद नहीं |
खाना चबा चबा कर खाओ , गिन गिन कर चबाना है - ये शरीर जानती है , वहां घुसना क्यों है ?
हमें बेखुदी , बेपरवाही चाहिए | (egolessness)
परवाह से मुक्त होना है | हमें ये पता होना चाहिए कि हमारे लिए कुछ नहीं है |
पुनर्जन्म क्या है ?
अहम् क्या है ?
हमारे भीतर कौन है जो "मै " बोल रहा है ?
अहम् |
अहम् एक झूठी चीज है , जो है ही नहीं |
यही अहम् खुद को जीवात्मा बोल देता है - माने जिसको हम जीवात्मा बोलते हैं , वो है ही नहीं |
जब अभी नहीं है , तो वो उड़कर दुसरी देह में कैसे घुस जायेगी ?
पुनर्जन्म कैसे होगा , जब वर्तमान जन्म ही नहीं है ?
कृष्ण कहते हैं , कि " तुम अभी भी बस एक मशीन हो |"
मशीन बस एक व्यवस्था होती है , वो व्यवस्था टूट गयी , तो मशीन ख़त्म और जोड़ दी , तो चालू |
मनुष्य तो अब फैक्ट्री में भी जन्म हो रहे हैं ( lab grown babies)
आज मनुष्य की औसत आयु भी ज्यादा है |
और विज्ञान इतनी तेज़ी से विकसित कर रहा है कि वो आने वाले समय में शरीर की सारे बीमारियों को ठीक कर दे |
मृत्यु का मतलब इस शरीर मशीन में आयी एक खराबी है |
मृत्यु का मतलब ये नहीं कि शरीर गिर गया है और भीतर से चिड़िया निकलकर के फुर्र हो गयी है , ऐसा नहीं |
कृष्ण समझा रहे है , प्रकृति के तीन गुण है , जिनसे ये पुतला चल रहा है |
ऐसा नहीं है कि उसके भीतर कोई बैठा हुआ है जो उसको चला रहा है |
और अगर कोई मृत्यु ही ना हो , तो पुनर्जन्म कैसे होगा ?
विज्ञान ऐसा कर सकता है कि हमारी मृत्यु ही ना हो |
अगर वो दिन आ जाता है कि विज्ञान मृत्यु ही ना होने दे , तो बहुत खतरनाक होगा |
क्यूंकि तब मानव और भी डरा हुआ होगा | क्यूंकि तब उसे पता है कि अगर वो सावधान रहे , तो कभी नहीं मरेगा , तो वो बहुत ज्यादा सावधान रहेगा , इतना ज्यादा डरेगा |
जब हमें पता है कि हम कितनी ही सावधानी रख ले , मरना तो है ही , तो खुलकर जीते है |
पर "मै अमर हूँ "- ये डर पैदा करता है , उसे लगेगा की ट्रैकिंग करने जाऊँगा तो ऊपर से कोई चट्टान गिर उसके ब्रेन को चकनाचूर कर देगा , और इस डर से ट्रैकिंग नहीं करेगा |
हमारा बस यही काम है कि साक्षी हो जाएँ |
जो साक्षी होता है , वो कोई नहीं है :- और जो कोई नहीं है - वही आत्मा है |
अगर कोई है जो साक्षी है , तो अभी साक्षी भी अहंकार मात्र है |
आपका साक्षी होता है कोई , आप साक्षी नहीं होते |
You can not be the witness, you are witnessed.
अहम् अगर नहीं है , तो ये भूत प्रेत , पुनर्जन्म का बवाल भी नहीं है |
शरीर भर है , शरीर मिट्टी से उठता है , और मिट्टी हो जाता है |
प्राण केवल यांत्रिक प्रक्रिया है |
हमारा एक ही नाम है - "अहंकारविमूढात्मा "||
जब लगे मैंने कुछ किया या मेरे साथ कुछ हुआ , तो बोलिए-
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते | मैं कर्ता हूँ , ये मानता है |
जो हुआ वो गुणों ने करा | मै इन गुणों का दास हूँ |
तो मुक्ति क्या :- इन तीन मालिकों से त्यागपत्र दे देना |
शरीर Incorporated |
Resigned |
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समाज LLP |
Resigned |
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संयोग Proprietorship |
Resigned |
यही मुक्ति है ||
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