Reading 28 :- संघर्ष :- पाठ -३ नोट्स :-आज दुश्मन छुपा हुआ है |
वीर भगत सिंह के सामने दुश्मन प्रकट था – अंग्रेज ; और आज
शत्रु अप्रकट है – तो वो अप्रकट शत्रु कौन है ?
शुरुआत करते हैं , सौ साल पहले , मांस खाने की प्रतिक्रिया
से |
सौ साल पहले , जानवर वध हो रहा है – तो वो चिल्लाता था ,
खून बहता था – ये सब प्रकट था |
पर आज सजे हुए साफ़ सुथरे डब्बे में मीट आ जाता है – बिलकुल
अप्रकट – उन जानवरों की पीड़ा का |
हर जगह restaurant में साफ़ सुथरा , AC , संगीत , सुनहरा वातावरण – और थाली में मांस
परोसा जाता है – क्या यहाँ कहीं भी जानवरों की पीड़ा प्रकट है ?
हम छुट्टियाँ मनाने हवाई जहाज से चल देते हैं – क्या कहीं
भी प्रकट है – वो हवाई जहाज कितना कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं ?
हमारे चिप्स , भुजिया के
पैकेट – उसमे पाम आयल (palm oil ) इस्तेमाल होता है , ये कहीं से भी नहीं प्रकट
है – कि कितने ही orangutan ओरंगउटान की हत्या हुई है
|
ये ही है , प्रकट और अप्रकट | हमें दिखाया ही नहीं जाता कि हम कितना घटिया
जीवन जी रहे हैं |
हम दफ्तर में काम करते हैं , हमें पता भी नहीं होता कि हम जो software लिख रहे हैं , वो किस चीज
के लिए है – दुनिया को बर्बाद करने के लिए ?
हम अपना काम करते हैं , दुनिया के अमीरों को और अमीर बनाने के लिए |
मंदिर प्रकट है , पर उस मंदिर की जगह जंगल था और उसे काटा गया – अप्रकट है |
हम अपनी आँखों से देख ही नहीं पाते , जो बताया नहीं जा रहा | छुपाया जा रहा है
|
हम अपने छोटे स्वार्थ के आगे कुछ देख – सुन ही नहीं पाते |
आज हम पूरे तरीके से अपने दुश्मन की गिरफ्त में हैं | दुश्मन का खा रहे हैं ,
टीवी देख रहे हैं , दुश्मन की नौकरी कर रहे हैं | उसी के अनुसार शादी कर रहे हैं ,
जीवन जी रहे हैं , बच्चे पैदा कर रहे हैं |
इनसे लड़ने के लिए धर्मयुद्ध चाहिए |
Helpless इसलिए महसूस करते हैं
क्यूंकि हमें सुविधायों की लत लगी है |
कीमत अदा करनी पड़ती है , कुछ भी सच्चा करने में |
उभोक्तावाद ||
इंसान भोगना हमेशा से चाहता था |
पर मजबूरी थी , पूरा भोग नहीं पाता था |
औद्योगिक क्रांति और इन्टरनेट के बाद इतनी वस्तुएं है , जो जितना चाहे उतना
भोग सकता है |
दुनिया की आबादी भोगने के लिए ही तो पैदा हो रही है |
पर ये इतनी भोग की वस्तुएं – ऐसे ही नहीं आ रही ; कीमत है उसकी | चिप्स orangutan ओरंगउटान की लाश से आ रही है | जूते , चमरे
यूँही नहीं हैं – पीछे कई लाशें हैं |
पहले भोगने पर धर्म अंकुश लगता था |
पर आज के समय में धर्मगुरु भी भोग को बढ़ावा दे रहे हैं |
अगर वो भोगने के खिलाफ बोले , तो भीड़ जुटेगी ही नहीं |
विज्ञान का दुरूपयोग भोगने के अवसर दिए जा रहा है और धर्म
भोगने को प्रोत्साहित कर रहा है |
धर्म का काम था सही दिशा देना , अर्थ पर , काम पर अंकुश लगाना | पर धर्मगुरु
आज उन लोगों के साथ उठते बैठते हैं जिनका प्रयोजन है काम वासना को भड़काना ; जिनका
पैसा कमाना ही प्रयोजन है |
अब भोग खुले आम नाच रहा है , कोई रोक टोक नहीं |
इनसे लड़ना जरुरी है , भले हार मिले |
गाँव में जहाँ पशुयों को बड़े प्यार से रखते हैं , उनकी पूरी सेवा करते हैं ,
दूध का खुद के लिए ही इस्तेमाल करते हैं – तो क्या ये भी गलत है ?
कम गलत है , पर गलत है |
कोई हमें कैद में रखे , और दाना – पानी दे , तो क्या हम स्वीकार करेंगे ? –
नहीं न |
प्रेम वश रखना बिलकुल एक बात है , और दूध के लिए रखना बिलकुल दूसरी बात है |
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