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Reading 33:- The Lorax by Dr. Seuss!

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  Beautifully crafted with colourful pictures with a strong message to all of us of the danger that industrialism and consumerism pose today on the planet. You will be amazed to find that this book was published in 1971 and how, this stands true today. As if, Dr. Seuss knew the future at that time only.  The word "ThNeeds" used in the book is so apt. Everywhere we are surrounded with so called ThNeeds, at the cost of what? At the cost of this planet . Well! We all can witness climate catastrophe and there is no denial to it. The lorax is a character representing environment, speaking for the tree, against the evil acts of Once-ler, an industrialist who can think of nothing but profits. Lorax gives a powerful message to all of us – “UNLESS someone like you cares a whole awful lot, nothing is going to get better. It's not.” This is something, and this will definitely hit you harder, if you can see, how these top 1-2% industrialists with around 50% of wealth conce

Reading 32 :- संघर्ष :- पाठ ७ नोट्स- अपनी योग्यता जाननी हो , तो अपनी हस्ती की परीक्षा लो |

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  पात्रता का निर्धारण कैसे हो ? पात्रता के निर्धारण का अर्थ है , विवेकपूर्ण भेद कर पाना | क्या भेद कर पाना कि कौन सुपात्र है और कौन कुपात्र है | परीक्षार्थी को उसको उसकी सामान्य स्थिति से भिन्न कोई स्थिति देनी पड़ेगी | अगर हम पुस्तकें वितरित करने गए हैं , तो वहां अपने ही व्यक्तित्व का परीक्षा पत्र होना पड़ेगा | स्टाल को , स्वयंसेवक को , हस्ती को , पर्सनालिटी को एक चुनौती की तरह होना होगा | हमारी हस्ती में कुछ ऐसी बात हो कि कोई खींचे हमारी ओर | लेने वाला किताब नहीं , तुमसे तुम्हे लेता है | हम जैसे हैं , उसी अनुसार वो किताब के भी महत्त्व का , और गहराई का निर्धारण कर लेता है | तुम्हारी शक्ल को किताब का सार होना चाहिए | चेहरे पर पुस्तक का अर्थ छपा होना चाहिए | आँखों में पुस्तक का प्रकाश होना चाहिए | तब जो आएगा , वो समझ जाएगा कि अगर देनेवाला ऐसा है , तो देय वस्तु भी अच्छी ही होगी | अध्यात्मिक स्वयंसेवक को कभी अपनी पहचान छुपानी नहीं चाहिए | अगर हम खुद को जनता जैसा ही प्रदर्शित करने लग गए , तो जनता की परीक्षा कैसे होगी ? हम अपनेआप को छुपा लेंगे , तो पता कैसे चलेगा

Reading 31 :- संघर्ष :- पाठ -६ नोट्स- भारत ज्यादातर क्षेत्रों में इतना पीछे क्यूँ ?

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  भारत में दुनिया के कामों में excellence नहीं दिखती ? हर क्षेत्र में भारत चाहे व्यवसाय हो , खेल हो , तकनीक हो आदि पिछरा हुआ दीखता है ; ऐसा क्यूँ ? पश्चिम को वेदांत कभी नहीं मिला | तो उसने माना दुनिया सच है | और फिर उसने दुनिया में ही तरक्की करनी शुरू कर दी – अच्छे अस्पताल , अच्छी तकनीक , आदि | पर भारत के साथ दुर्घटना हो गयी | भारत में कुछ असाधारण लोग हुए जिन्होंने कहा ये दुनिया / जगत मिथ्या है और ये तन – मन सत्य नहीं है | और ये बात पूरे जनमानस के साथ उन्होंने सांझा किया , पर जनमानस बेहद नाकाबिल निकला उनकी बात का | ऋषि – मुनियों ने , संतों ने ये बात बताई ताकि हम दुनिया में बंध   कर ही न रह जाए | उन्होंने कहा दुनिया का उपयोग संसाधन की तरह करो , ताकि दुनिया से मुक्त हो जाओ; पर दुनिया को लक्ष्य नहीं बनाना है | जगत में संघर्ष करना है , भागना नहीं है | पर हमने संतों की इस बात को पकड़ लिया कि जगत मिथ्या है , क्या करना है उत्कृष्ट हो कर के | जैसे – क्या करना है कमरे की सफाई कर के , एक दिन तो सब को धुल में मिलना है | भारत में हर आदमी दार्शनिक हो गया | किसी को बोलो थोडा दौड़ लग

Reading 30 :- संघर्ष :- पाठ -५ नोट्स- पढाई , संसार और जीवन के निर्णय

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  मन शांत है या अशांत है – महत्त्व नहीं देना है | मन शांत हो भी गया , तो उससे क्या ही मिल जाना है | मन छाया है , हमारी | मन पीछे पीछे आना है – हमें बस जान दिखानी है | मन की शांति – अशांति ; सहमति – असहमति की परवाह नहीं करते | मन पर अनगिनत प्रभाव पड़ते हैं , लाखों सालों के संचित प्रभावों का नाम है मन | मन को कोई भी , किधर को भी खींच सकता है | पर ये जितने भी प्रभाव हैं , वो कुल मिलाकर भी , आत्मा के सामर्थ्य के आगे कुछ नहीं है | तो आत्मिक रूप से हम जिधर को भी बढ़ेंगे , मन पीछे पीछे आएगा |   जगत को कुछ ऐसा देंगे जिससे उसे लाभ हो रहा है , तो जगत भी तुमको सफलता आदि   देगा | लोगों को वो देना है , जो वास्तव में मूल्य रखता है | और जो भी मूल्यवान दे रहे हैं , उससे पता भी चलना चाहिए , कि उन्हें लाभ हो रहा है | कई बार , देने के साथ साथ – जताना और समझाना भी पड़ता है ; क्यूंकि कभी कभी लोग नहीं समझ पाते कि उनको लाभ हो रहा है |   प्रश्न – क्या गुरु को एक उदाहरण मानकर , उनपर विश्वास रखकर चलने से आखिरी चीज तक पंहुचा जा सकता है ? अगर गुरु को उदाहरण बना रहे हैं , तो फिर , उस

Poetry4 :- I still search for You!!

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I catch my breath & close my eyes, Travel back in time, I travel with the wind of spring Into the land of new born Only to meet you, And , be amazed at the beauty of curiosity That shines in your eyes Smiling out there, untouched. That makes me smile. Ripples & the thunder Rain & the petrichor Leaves shivering,  falling upon the green wet grass And, there you are Jumping & walking & embracing your feet with the coolness of wet grass. Fallen rose petals Shining sunflowers Bees humming And you flying  with your arms stretched out high. The lunch bell during noon time Where you run to the fields Waiting eagerly for the flying kite-to pass by Only to relish the take away of the chapatis placed near by your side. The splash of water and the swift movement of the fish Orange and red, black and yellow Exhaling little bubbles,  you swim along with her, in her world Freely and all with ease. Flower plumeria all over the bare ground Shining like white dew drops with yellow pe

Reading 29:- संघर्ष :- पाठ -४ नोट्स :-प्याज लहसून , और यम – नियम का आचरण

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  प्याज लहसून वर्जित होते हैं – साधना में – तो ये कहाँ तक सही है ? दो पक्ष –     १)   जैसा अन्न , वैसा मन – हम जो कुछ भी खाते हैं , उसका हमारी मनोस्थिति पर अंतर पड़ता है | हम जो कुछ भी खाते हैं , वो अपनी प्रकृति के अनुसार हमारे शरीर और मन पर प्रभाव डालता है | प्याज लहसून में वैज्ञानिक कुछ रसायनों के बारे में बताते हैं , जो हमें उत्तेजित करते हैं , हमारी स्थिरता में विघ्न डालते हैं | हम खुद भी देख सकते हैं , कि जब हम प्याज लहसून खाते हैं , तो मन पर प्रभाव पड़ता ही है |      २)   हम कहीं   प्याज – लहसून , और अन्य कर्मकांड के चक्कर में जो केंद्रीय चीज है – मैं / अहम् / I उसपर तो ध्यान देना नहीं बंद कर दिए | नियम , कर्मकांड का अपना महत्त्व है पर उनमें उलझकर कुछ ख़ास बदलाव हो नहीं जाना है , अगर   जो केंद्रीय चीज है अहम् उसपर काम नहीं कर रहे | एक लाख बार ध्यान एक / मैं पर देना है , तब छह बार ध्यान इन छोटी छोटी चीजों – प्याज – लहसून वर्जना पर दे सकते हैं |   प्रश्न – आचरण का अर्थ ? हम आचरण को पहली चीज मान लेते हैं | आचरण के तल पर बदलाव हम नकली मुखौटा डाल कर भी ला सकते

Reading 28 :- संघर्ष :- पाठ -३ नोट्स :-आज दुश्मन छुपा हुआ है |

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  वीर भगत सिंह के सामने दुश्मन प्रकट था – अंग्रेज ; और आज शत्रु अप्रकट है – तो वो अप्रकट शत्रु कौन है ? शुरुआत करते हैं , सौ साल पहले , मांस खाने की प्रतिक्रिया से | सौ साल पहले , जानवर वध हो रहा है – तो वो चिल्लाता था , खून बहता था – ये सब प्रकट था | पर आज सजे हुए साफ़ सुथरे डब्बे में मीट आ जाता है – बिलकुल अप्रकट – उन जानवरों की पीड़ा का | हर जगह restaurant में साफ़ सुथरा , AC , संगीत , सुनहरा वातावरण – और थाली में मांस परोसा जाता है – क्या यहाँ कहीं भी जानवरों की पीड़ा प्रकट है ? हम छुट्टियाँ मनाने हवाई जहाज से चल देते हैं – क्या कहीं भी प्रकट है – वो हवाई जहाज कितना कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं ? हमारे चिप्स , भुजिया के पैकेट – उसमे पाम आयल ( palm oil ) इस्तेमाल होता है , ये कहीं से भी नहीं प्रकट है – कि कितने ही orangutan ओरंगउटान की हत्या हुई है | ये ही है , प्रकट और अप्रकट | हमें दिखाया ही नहीं जाता कि हम कितना घटिया जीवन जी रहे हैं | हम दफ्तर में काम करते हैं , हमें पता भी नहीं होता कि हम जो software लिख रहे हैं , वो किस चीज के लिए है – दुनिया को बर्बाद करने के