Reading 6:- पुस्तक प्रकृति :- पाठ ३.2 - नोट्स:- अहंकार को हटाओ !
वेदांत और बुद्ध दर्शन की शुरुआत |
दोनों दर्शन की शुरुआत है :- जीवन दुःख है |
और दोनों दर्शन का अंत :- जीवन दुःख है तब तक जब तक तुममे अहंकार है |
बुद्ध कहते हैं :- जान लो कि अहंकार खाली है , शून्य है |
वेदांत कहते हैं :- अहंकार को आत्मा कर दो |
दोनों कहते हैं :- अहंकार को हटाओ |
बुद्ध कहते हैं :- अहंकार एकदम बात गलत है , है ही नहीं | मै है ही नहीं | आत्मा है ही नहीं , हटाओ |
वेदांत कहते हैं :- अहंकार को कृष्ण को दे आओ |
अगर अहंकार नहीं हटाया , तो जीवन दुःख ही होगा |
डीटरमिनिस्म एवं फ्री विल ( Determinism and Free Will)
अगर हम बस यही कह देते हैं कि सब हो रहा है - ये डीटरमिनिस्म यानि भाग्यवाद हो जाती है |
पर ऐसा है नहीं |
एक बिन्दु आता है , जब आप "हो" जाते हो | "मैं हूँ "|
पर उस बिन्दू तक आने के लिए , पहले ये मानना पड़ता है कि "मैं नहीं हूँ "|
जो अपने "न होने" को बर्दाश्त नहीं कर सकता , वो कभी "हो" नहीं पायेगा |
जो झूठ को हटा नहीं सकता , सच उसके लिए नहीं है |
फ्री विल जो होते हैं , वो कहते हैं कि सब कुछ मैंने करा |
एब्सल्यूट डीटरमिनिस्म कहते हैं , सब कुछ पहले से ही तय है | कुंडली में सब कुछ लिखा हुआ है |
एक होते हैं फ्री विल जो कहते हैं , सब कुछ मैंने करा |
दोनों ही गलत हैं |
हम जैसे है , उसमे हमारी फ्री विल हो ही नहीं सकती | हमने पिछले पोस्ट में देखा कि कैसे हमारे तीन मालिक हैं और हम उसके नौकर ; जिधर भी मालिक हमें दौराती है , हम भागते हैं |
और जो भाग्यवादी है , जो कहते हैं , सब कुछ प्रभु की इच्छा है , उनकी इच्छा से चल रहा है - वो ये कैसे बोल सकते हैं कि पास्ता देखकर जो लार बहती है , वो प्रभु की इच्छा है ?
वो भी नौकर है - प्रकृति के गुणों के ( शरीर , समाज और संयोग ) के ; बस दर्शा रहे हैं , कि प्रभु के नौकर हैं |
दोनों ही प्रकृति के दास है |
अगर हमें लगे कि आज कामना पूर्ति हुई है , जरुरी है , कि हम सवाल करें :- किसकी कामना ?
कामना हमारी तो थी ही नहीं , वो थी तो इन तीन मालिकों की , तो तुझे क्या मिला ??
वेदांत में विक्टिमईजेशन (victimisation) की कोई जगह नहीं है
मै शोषित हूँ | वेदांत में इसकी कोई जगह नहीं है |
संयोग से पढ़ते वक़्त , किसी का फ़ोन का आना , या किसी का बुलाना :- संयोग मालिक ने आदेश दिया सो दिया , हमने ये अधिकार क्यूँ दिया कि उसकी सुने ?
अगर सत्य हमें इतना ही प्यारा है , तो कोई और फ़ोन सुनने की फुरसत ही कैसे मिल गयी ?
हम अपनी जिंदगी को वैसा बनाये रखने के लिए , शिकायत के झोले को साथ रखकर चलते हैं :- मेरे साथ यह हुआ , मेरे साथ वैसा हुआ | ये इंसान जिम्मेदार है , मेरे ऐसा होने का आदि आदि |
वेदांत इसकी कोई इजाजत नहीं देता |
अगर किसी ने अत्याचार किया , तो वो उसका गुण है , जैसे हवा का बहना | दोनों जड़ है , जड़ यानि जिसमे चेतना नहीं है |
और अगर हम खुद को शोषित मानेंगे , तो हम भी जड़ है |
जड़ माने पागल , मूरख - जिसने अत्याचार किया , वो पागल था इसलिए उसने किया , उससे कैसी शिकायत ?
अगर बच सकती थी , तो बचती ; और अगर नहीं बच पायी ; तो उसे भूलने की जिम्मेदारी भी मेरी है |
अपराधियों को सजा कैसे मिलेगी , अगर एक जागृत समाज हो ?
उनका अहंकार मिटाकर |
उनको अध्यात्मिक सुधारगृहों में भेजकर |
वो अध्यात्मिक स्थान नहीं , जहाँ , भजन , गीत और लड्डू मिलते है ; ऐसी जगह जहाँ सचमुच अहंकार मिटाया जाता हो |
जेल में डाल देना , चक्की पीस लेना - छोटी यातना होती है |
असली दर्द तब होता है , जब भीतर जो होता है - वो मिटता है ||
पर समस्या ये है की ऐसी अध्यात्मिक स्थापना करने के लिए ; कृष्ण जैसा चाहिए कोई , जो नहीं है |
हमारी न्याय व्यवस्था - बदले की व्यवस्था है | Revenge system.
तुमने मेरे साथ बुरा किया , अब तुम्हारे साथ बुरा होगा |
किसी को जागृत कर देना ही , उससे बदला लेना है | यानि की उसकी चेतना को उठाना |
अगर हम बदले की आग में , किसी पर आक्रमण करें , हिंसा करे , तो उससे उसकी चेतना गिरती है , यानि जड़ता और बढती है |
तो उसके अन्दर के अपराधी से तो बदला हुआ ही नहीं | वो पहले भी जड़ था , अब भी जड़ है |
अगर बदला लेना है , तो अध्यात्म की ओर अपराधी को ले जाइए |
Comments
Post a Comment