Reading 5:- पुस्तक प्रकृति :- पाठ ३.1 - नोट्स (An Activity):- हमारी मान्यता , Sex vs Gender


हमने पिछले पोस्ट के नोट्स में देखा कि कैसे हम प्रकृति के गुणों ( तीन मालिकों ) के आदेशों पर सरेंडर कर देते हैं और मान बैठते हैं कि हमने किया || (Shrimadbhagwad Geeta Shlok 3.27)

पुस्तक में इसी सी सम्बंधित एक मनोरंजक activity बताई गयी है |

कल्पना करना :-

जैसे अगर मै भारतीय हूँ , तो कल्पना करना कि अगर मैं चीनी होती तो ??
मै जब इस कल्पना का अवलोकन कर रही थी तो पाया कि कैसे मेरा भारतीय होना - संयोग , समाज और शरीर द्वारा निर्धारित है | 

हम दूसरे देश के व्यक्ति को , इस कल्पना में कैसे अगर मै भारतीय ना होकर चीनी होती , तो मेरा चीनी होना , सर्वप्रथम मेरे शरीर ( मेरी बोली , ढांचे , भाषा आदि आदि ) द्वारा निर्धारित होता ; मेरा समाज , मेरा संयोग होता |

तो ये सब प्रकृति के गुण ही तो हैं | 

 >> एक प्रश्न महिलायों के लिए :-

कल्पना करना कि अगर पुरुष होती तो ?

खुद से पूछना कि अभी जिन बातों से डरती हूँ , क्या डरती फिर ?

अभी जो जीवन में निर्णय ले रखे हैं , वो लेती फिर ?

पिता और माँ का क्रोमोसोम (XX) जो कि एक संयोग है , उसने तय कर दिया कि हम घर से बाहर निकलेंगी या नहीं |

श्रीकृष्ण श्लोक ३ .27 के माध्यम से बोल रहे हैं , कि स्त्री होना देह की बात कम , पर मान्यता की बात ज्यादा है |

फ्रेंच नारीवादी दार्शनिक थी , सिमोन दी बवुआ :- उनका एक प्रसिद्ध वक्तव्य है :- 

" One is not born, but rather becomes . a woman." सिमोन पूरे समाज से अपने किताब द सेकंड सेक्स में कह रही हैं , कि ये जो तुमने मुझे बना दिया है , मैं ऐसी पैदा नहीं हुई थी |

ये चेतना का विद्रोह है समाज के प्रति जो मालिक बना बैठा है | वो कह रही हैं :- एक तो शरीर है ही तानाशाह और दूसरा ये समाज , जिसने मेरे भीतर एक बहुत कुंठित ईगो " मैं " बैठा दिया है |

और अगर हम श्रीकृष्ण की ओर चलें , तो कृष्ण कहते हैं :- ये जो कुछ भी बैठा दिया गया है , उसे हटाया जा सकता है , शिकायत करने की जरुरत नहीं ; जिस समाज ने तुम्हारे भीतर बैठा दिया है , वो भी अपने गुण से मजबूर है |
सेक्स बनाम जेंडर 

सेक्स जानवरों में भी है , पर हम अगर दो खरगोश को देखें , तो बताना मुश्किल होगा कि मादा कौन है , नर कौन है | वहां मादा कुंठित नहीं होती | उनका एक जैसा व्यवहार है , एक ही जगह रहते हैं , और उनका काम चल रहा है |

पश्चिम में मुक्ति का अर्थ बनाम भारत में मुक्ति का अर्थ :-

पश्चिम में शिकायत का भाव रहा है | और जहाँ शिकायत है , मतलब मुक्ति के लिए सामने वाले पर आक्रमण | सामने वाले को मिटाओ , तो मेरी मुक्ति | 

शोषक को हमेशा बाहर माना गया है |

भारत में मुक्ति का अर्थ है स्वयं को मिटाना |

भारत में श्री कृष्ण कह रहे हैं :- बाहर जो कर रहा है , वो उसका गुण है | जैसे मै बिच्छू , ख़रगोश आदि के काटने पर शिकायत नहीं कर सकती वैसे ही , 

किसी जीव से शिकायत नहीं कर सकता |

उसने कहा सो कहा , तूने सुना क्यूँ ??

ये सब गुण हैं :- लू का बहना ; गर्मी , ठंडी |

जड़ और चेतन

अगर हवा चले और धुल चिपका दे हमपर , तो हम हवा को लाठी नहीं मारते पर वही अगर कोई मनुष्य हमपर आकर धुल चिपका दे , तो उसे लाठी मारते हैं | क्यूँ ?

क्यूंकि हवा जड़ है और मनुष्य चेतन मानते हैं |

चुकि हम स्वयं को चेतन मानते हैं , इसलिए हम ये मान बैठते है कि सामने वाला मनुष्य जो हमारी तरह दिखता है , चेतन ही होगा |

हमारा अहंकार ही हमारा दुःख बन गया | हम ये मानते हैं , कि कोई कर रहा है | जबकि बस प्रकृति अपना खेल खेल रही है | 

दुःख हमें प्रकृति के गुणों से नहीं मिलता , जबकि ये सोचकर मिलता है कि उन गुणों के पीछे कोई कर्ता है | ये हमारी मान्यता ही दुःख का कारण है |

Comments

Popular posts from this blog

The Room on the Roof- Ruskin Bond !! A Journey with Rusty!!

Reading 35 :- संघर्ष :- पाठ 9 नोट्स- वृत्ति !!

Reading 34 :- संघर्ष :- पाठ ७ नोट्स- समझने की प्रक्रिया _