Reading 3:- पुस्तक प्रकृति पाठ 2 :- वासना गलत है तो भगवान ने क्यूँ बनाई ?:-सारांश
वासना, यौन्नांग किसने बनायीं है
?
ये प्रकृति से आई है | भगवान से नहीं आई है |
शरीर को है वासना |
वासना का होना कुछ गलत नहीं है | वासना शरीर के लिए उपयोगी ही है , क्यूंकि
शरीर को आगे बढ़ना है |
बस ये सोच बैठना कि वासना मुझको है , ये गलत है | वासना शरीर को है , मुझको
नहीं | हम शरीर नहीं है |
शरीर
शरीर एक यन्त्र है जिसको प्रकृति ने बना दिया है |
शरीर को अपना काम पूरा करना है और एक दिन समाप्त हो जाना है |
शरीर को खाना है, मल मूत्र का
त्याग करना है , सोना है, सम्भोग करना है और समाप्त हो जाना है |
हम शरीर में इतने लिप्त हो जाते हैं , कि सिर्फ दुःख पाते हैं |
हममे और शरीर में अंतर है |
शरीर के इरादे क्या हैं ?
अगर हम कभी ध्यान से देखें , तो पायेंगे की कैसे पढ़ते वक़्त, हमें अचानक शौच को
जाना होता है ?
हम कितना भी उंचाई का काम कर रहे हों , हमें उस वक़्त भागना होता है |
तो हमारा इरादा था पढने का , पर शरीर
को जाना था – शौचालय |
शरीर इसी तरह कामवासना की ओर भी भागता
है |
तो अगर हम देखें तो पायेंगे , यहाँ शरीर के इरादे हमेशा निचले तल के ही हैं |
हमारी चेतना को तृप्ति चाहिए , पर शरीर को वासना |
अगर शरीर के इरादे निचले तल के हैं , तो इसका मतलब शरीर पर
ध्यान ही ना दें ?
नहीं |
शरीर को सही खान पान देना ही है , पर इसका मतलब ये नहीं कि जीवन का उद्देश्य
खाना हो गया | हम अकसर सुनते हैं – खाओ , पीओ , मौज करो ; ये शारीरिक स्तर पर जीवन
का उद्देश्य नहीं हो सकता |
अब अगर हमें शौच जाना है , तो हम ऐसा नहीं कह सकते , कि ये तो निचले तल शरीर
की मांग है और मै अभी पढाई कर रही हूँ – तो वहीँ पर शौच कर दिया और चारों ओर
दुर्गन्ध |
शरीर की पुकार को नहीं सुनेंगे , तो वह परेशान करेगी |
अगर जब शरीर बीमार पड़ती है , तो अन्दर चेतना भी दुखी होती है |
प्रकृति - आचार्य प्रशांत |
शरीर की जगह
शरीर को एक जगह देनी ही पड़ेगी |
पर बहुत ज्यादा नहीं देनी है |
एक सही जगह देनी है |
और निचले तल पर देनी है |
निचले तल का आशय |
आशय यह की अगर परीक्षा है और अलार्म बज रहा है , शरीर कह रहा है सो जाओ ,
चेतना बोल रही है – पढो , तो शरीर की ना सुनकर चेतना की सुनना है |
चेतना की बात ऊपर रखनी है |
शरीर को जगह क्यूँ देनी है ?
हमने देखा की शरीर को अगर जगह नहीं देंगे , तो परेशान करेगी;
पर अगर सही जगह दिया , तो काम भी आएगी |
शरीर ही सेवक बन , हमारे बड़े कामों में सहायक बन सकता है |
शरीर मित्र बन जाएगा , अगर जीवन में हम कुछ ऊँचा काम करते हैं |
शरीर की जरूरतों को जैसे कामवासना , अँधा भोग , निद्रा आदि को संत विरोध उन
लोगों के लिए करा है , जिन्होंने शरीर को अपने सर पर चढ़ा लिया है |
शरीर को सही जगह दो |
धनयवाद ||
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