Reading 13:-गाँधी के ब्रह्मचर्य प्रयोग - शंकर शरण ! समीक्षा !

गाँधी  के  ब्रह्मचर्य प्रयोग - शंकर शरण ! समीक्षा !

सोर्स- गूगल

 

हर आदमी में होते हैं , दस- बीस आदमी
जिसको भी देखना हो , दो- चार बार देखिये !! - निजा फ़ाज़ली

इस  किताब  को  पढ़ते - पढ़ते  ये  बात  ज़हन  में  जरूर  आती  है - कि  गाँधी  के  भीतर  भी  दस- बीस  गाँधी  हैं , और  उन्हें समझने  के  लिए  उन्हें  हर  दृष्टि  से  अध्ययन  करना  पड़ेगा।  

पर  मैं तब  भी उन्हें  समझ  पाऊँगी या  नहीं, ये  कहना  मुश्किल  है।।

ये  किताब - " गाँधी के ब्रह्मचर्य प्रयोग ",  गाँधी  द्वारा  लिखे  हुए  पत्रों  द्वारा  उनकी  अंतर्मन  की  उलझनें, आसक्ति  पर  प्रकाश डालती  है। 

उनके  द्वारा  लिखे   गए  पत्रों  के  नज़रिये  को  समझ  पाना  बेहद  कठिन था, मेरे लिए।

जिस  गाँधी  के  लिए  हम  बच्चों  को  स्कूल  से  सत्य  एवं  अहिंसा  का  पूजारी  बताया  गया  है , उन्हीं  के  पत्रों  में  खुद  की  बातों  का  तोड़  - मरोड़ करना कैसा  सत्य  है , ये  अकसर मेरा  मन सवाल  करता  है।  

गाँधी  के  स्त्रियों  के  साथ  अलग-अलग  प्रयोग  जिन्हें  वो  शुरुआत  में  " प्राकृतिक चिकित्सा " और बाद में " ब्रह्मचर्य का प्रयोग " कहते हैं , वो  सब  मेरे  लिए  हर  तरह  से  अस्वीकार्य  है।  और  मेरे  ही  लिए  क्यों , हर  लड़की , हर  स्त्री  के  लिए  अस्वीकार्य   ही  होगा।  फिर  भी  पता  नहीं  , क्यों  ओशो ने , गाँधी  के  साथ  स्त्रियों  का निर्वस्त्र  अवस्था  में  शयन , एक  माँ- बेटी  का  रिश्ता  कहा है। 

इतिहास  के  जो  गाँधी  एक  ओर  स्त्रियों  की  सशक्तिकरण  की  बात  करते  हैं , वही  गाँधी  इन  पत्रों  के  जरिये  सुशीला  बहन एवं  अन्य  स्त्रियों  को  अपनी  सेवा  के  लिए  मजबूर  कर  रहें हैं । 

ये  कैसा  सशक्तिकरण  है ? और  शरीर  में  मालिश  करना , कंधे  पर  हाथ  रख  चलना , शयन करना ,  नहाना - ये  कैसी  सेवा  है ?

इस  किताब  को  पढ़ते  कई  बार  ऐसा  हुआ  जहाँ  मैं  इसे  जल्द  से  जल्द  ख़त्म  करना  चाह  रही  थी।  

मुझे  गाँधी  की  बातें  और  गाँधी  दोनों  ही  दो  लग  रहे  थे।  हमारा  इतिहास  हमें  इस  किताब  के  गाँधी  से  तो  परिचित  ही  नहीं  कराता। 
 
गाँधी  का योगदान  भारत  के  स्वतंत्रता- संघर्ष  में  बेहद  प्रभावशाली  रहा  है , पर  उन्हें  महात्मा  की  उपाधि  देना  क्या  उचित  है ? 

क्या  पता , ये  महात्मा  की  उपाधि, उनके  छवि  को  बनाये  रखने  के लिए  दी  गयी  हो ? हमें  किस  कदर , गाँधी  का  अंधभक्त , जन्म के  साथ  ही  बना  दिया  जाता  है।  नोट  से  लेकर  हर  जुबान  पर- , गाँधी  और सत्य , गाँधी और अहिंसा।

हमें  अपने  जन्मदिन पर  कभी  दफ्तर  से  छुट्टी  नहीं  मिलती , पर  गाँधी  के  जन्म  का  जश्न  हम  जरूर  मना  सकते  हैं। 

राष्ट्रपिता ,  महात्मा , २ अक्टूबर , ३० जनवरी , इन सबको  हमने  कितना  तवज्जु  दिया  है  या  फिर  हमसे  दिलाया  गया  है।

" स्त्रियों , लड़कियों  को  अपने  साथ  सुलाने  को  गाँधी  ने  विभिन्न  अवसरों पर , विभिन्न अनुयायियों  को  कभी  अपना  धर्म , कभी कर्तव्य , कभी  यज्ञ  भी  कहा  है। " मुझे  बिलकुल  समझ  नहीं  आता  ये  कैसा  धर्म  है ?

"स्त्रियों  के  साथ  निष्पाप  रूप  से  सोना  ही  उनके  ब्रह्मचर्य  का  प्रमाण  है।  पता नहीं , ये  कैसा  प्रमाण  है ?

मनु - गाँधी  प्रसंग  पढ़ने  के  बाद  मेरे  लिए  गाँधी  को  समझ  पाना  और  भी  मुश्किल  है।  मैं  खुद  को  गाँधी  की  तस्वीर  से  प्रश्न  करता  हुआ  पा  रही  हूँ  - बापू ,  ये  कैसे  प्रयोग  हैं  आपके ? मेरी  समझ  से  तो  बिलकुल  ही  परे  है।

पर  गाँधी   ने  पत्र  के  जरिये  सारी  बातें  अपने  मित्रों  से , परिवारजनों से , सहयोगियों से , आदि  से, सांझा  कर  दिया  है , ये सोचकर  हैरानी  भी  है।

इंसान  के  अंदर  काम - भावना , आसक्ति  का  होना  , कोई  ताज्जुब  की  बात  नहीं  है , पर  उनके  विभिन्न -विभिन्न प्रयोग  को ब्रह्मचर्य का प्रयोग  कहना ,  ये  बेहद  हैरान  करता  है  मुझे।

मेरे  जहन  में  ये  प्रश्न  अब  भी  है  - "स्त्रियों  के  साथ  सोना  , नहाना , मालिश करना  आदि  गाँधी  अपने  ब्रह्मचर्य  होने  का प्रमाण  बताते  हैं - तो  क्या  इसका  मतलब  ये  हुआ  कि  गाँधी  शरीर  की  सीमाओं  से  परे  हो  चुके  हैं ? वो  शरीर  के  आधार पर  स्त्री - पुरुष  में  कोई  भेद  नहीं  रखते ? पर  शायद  ऐसा  नहीं  है।  उन्होंने  अपने  प्रयोगों   का  लड़कियों  पर  भावनात्मक एवं मानसिक  रूप  से  क्या  असर  पड़  रहा  है - इसे अनदेखा किया।  और अगर  वो  शरीर  के  सीमाओं  से  परे  होते  तो , लोगों  को उनके  इन  प्रयोगों  से  आपत्ति  क्यों  होती ?

मनु  को  गाँधी  अपने  साथ  सुलाते  हैं  और  इसे  वे  अपने  यज्ञ  का  अंग  समझते  हैं।  ये  कैसा  यज्ञ  है ?  इसे  गाँधी  कहते  हैं - वे  भगवान  के  कहने  से  कर  रहें  हैं।  ये  कौन  से  भगवान  हैं  जो  आपको  कहते  हैं  कि - वत्स , तुम्हारा  स्त्री  एवं  कुवांरी लड़कियों  के  साथ  शयन  करना , तुम्हारी  ब्रह्मचर्य  में  तरक्की  बताता  है ?

गाँधी  के  लिए  मनु  के  साथ  सोना  धर्म  की  बात  है  और  गाँधी  कहते  हैं  कि " उन्होंने  तय  कर  लिया  है  कि  वे  दिखा  कर रहेंगे  कि  कोई  व्यक्ति  अपने  लिए  धर्म  की  बात  को  किन्हीं  निकटजनों  के  प्रेम  या  किसी  के  भय  से  छोड़  नहीं  सकता। " इस  अनुसार  तो  हर  व्यक्ति  जो  वासना  से  ग्रसित  है , कह  सकता  है  कि  मेरे  लिए  हर  दूसरी  स्त्री  के  साथ  निर्वस्त्र  शयन करना  धर्म  की  बात  है।  पता नहीं , कैसा  धर्म  है  ये ?

समझ  ही  नहीं  आता , 1946  में  चल  रहे  दंगों , विभाजन , आपसी  मतभेद , मार - काट  के  दौरान -  ये  कैसा  धर्म  प्रेरित करने  लगा  हमारे  राष्ट्रपिता  को ?

गाँधी  ने  किसी  की  ना  सुनी।  उनके  मित्र , सहयोगी , नेताओं  ने  सब  ने  आपत्ति  जताई  और  अंततः  उनका  साथ  भी  छूट  गया।  हम  गाँधी  को  गाँधी  की  तरह  क्यों  नहीं  देखते ?  उन्हें  हम  सत्य - प्रेमी , दुर्बलों  की  सेवा  करने  वाले , एक  सरल  जीवन  जीने  वाले , सेवा  के  प्रति  प्रेम  रखने  वाले  - इस  तरह  क्यों  नहीं  देखते ? 

महात्मा  की  उपाधि दे , एक  अंधभक्त  की तरह , उनकी  पूजा  करना  जरुरी  है  क्या ?

ये  पुस्तक  हर  गाँधी  अंधभक्त  को  पढ़ना  चाहिए ।  और  हर  व्यक्ति  को  जो  गाँधी  को  समझना  चाहता  है।  उन्हें  जानना चाहता  है।

ऐसा नहीं है कि इस पुस्तक को पढने के बाद आप गांधी जी से नफरत या उनका आदर  करना  छोड़ देंगे , हाँ पर अंधभक्ति पर सवाल जरुर खड़ा करेंगे |

और वैसे भी , वो कहते हैं , ना इतिहास के जो भी महान व्यक्तित्व रहे हैं , ऐसा नहीं वो हर तरह से परफेक्ट थे , हमारी समझदारी इसी में है कि हम उनके सकारात्मक गुणों को धारण करे ना कि उनकी कमियों को पकड़ उनका अनादर और शिकायत की रेल्कगारी शुरू कर दें ||

||गाँधी को समझने की एक कोशिश||

धन्यवाद ||

नोट - यह समीक्षा लेखिका के गुडरीड पेज पर भी प्रकाशित है |

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